हमारी नस्ल की जड़ों में दीमक लगाना चाहते हैं !
हर बार जब सोचने लगती हूँ
सब ठीक हो रहा है ,
किसी अंधेरे कोने से
गेरुया रंग में रगें भेड़िया निकल आतें है
कुछ गर्म लोहे उगलते हुए ,
इतना गर्म की साँसे ठंडी पर जाए,
आखिर वो निकलतें कहाँ से
और छुपतें कहाँ हैं,
कौन है सरपरस्त इनका,
किस के हाँथों में परी है
इस धर्म और गौरक्षकों की चाभी,
कौन है जो हैवानों का कारखाना चलाता है,
इंसानों से इंसानों का शिकार करवाता है, ताकि
किसी के घर का सूरज -चाँद निगल जाता है,
क्यों नहीं आते वो खुले में,
कहते क्यों नहीं सीना ठोक के
कि वो मुर्दों की बस्ती बसाना चाहते हैं,
ताकि गिद्धों की भूख शांत हो सके,
कायरों की तरह बस हमारी पीठों पे वार करतें हैं,
आए किसी दिन , किसी चौराहे पे
या खड़े हो जायें रामलीला मैदान में
और कहें, सारी जनता से कि वही हैं गिद्ध,
फिर देखें तमाशा कि कैसे धान रोपने वाले हाँथ,
बंजर जमीन कोउपजाऊ जमीन बनाने बाले हाँथ,
उनकी हड्डियों से खाद बनातें है,
और अपनी नस्ल बचते हैं,
कहाँ आएंगे ये सुग्गा का खाल ओढे गिद्ध,
डरपोक, बुज़दिल, कायर लोग
बस दूसरों के कंधे पे बंदूक रख के चलाना चाहते हैं,
हमारी नस्ल की जड़ों में दीमक लगाना चाहते हैं!
***
5 /12 /2018
मुग्द्धा सिद्धार्थ