हमारी जान के लाले पड़े हैं
ग़ज़ल
हमारी जान के लाले पड़े हैं।
वो ज़िद बंगाल की पाले, पड़े हैं।।
कहां से लेके आयें दाल आटा।
दुकानों पर अभी ताले पड़े हैं।।
मरे हैं भुख के ही ज़ह्र से ये।
तभी इनके बदन काले पड़े हैं।।
बुरा क्या मिलती है दो वक़्त रोटी।
गले पट्टा ही तो डाले, पड़े हैं।।
कोई कुछ बोलना चाहे तो कैसे।
ज़ुबानों पर बड़े ताले पडे हैं।।
बहुत कड़वा है ये वादों का काढ़ा।
इसे पीकर ही तो छाले पड़े हैं।।
न कोई ख़्वाब दिखलाओ “अनीस” अब।
हमारी आँखों में जाले पडे हैं।।
– अनीस शाह “अनीस”