हमारी चूड़ियाँ
गीत
चूड़ियाँ
हाथों में खनखनाती हमारी थीं चूड़ियाँ।
सुनके खनक सजन ने निहारी थीं चूड़ियाँ।।
सोलह सिंगार कर पिया के सामने गयी।
शरमा रही थी जब ये कुंवारी थीं चूड़ियाँ।।
नाजुक हैं कांच की कहीं जिद पर जो आएं तो।
यमराज के भी आगे ना हारी थीं चूड़ियाँ।।
यादों में सहमी सहमी सी चुपचाप जब रहें।
तेरी जुदाई में ये उतारी थीं चूड़ियाँ।।
क्या-क्या नहीं कराती अजी भूख पेट की ।
कोठे पर आयीं वक्त की मारी थीं चूड़ियाँ।।
माथे तिलक लगाके विदा माँ ने जब किया।
हमने वतन के वास्ते वारी थीं चूड़ियाँ।।
श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव साईं खेड़ा