हमारी ग़ज़लों ने न जाने कितनी मेहफ़िले सजाई,
हमारी ग़ज़लों ने न जाने कितनी मेहफ़िले सजाई,
दिल मे फिर से जीने की उम्मीदें जगाई ,
सोचा था इसी से अपनो को खुश रखेंगे,
पर हमारी ये फ़ितरत हमारे अपनो को ही रास न आई।
✍️वैष्णवी गुप्ता
कौशांबी
हमारी ग़ज़लों ने न जाने कितनी मेहफ़िले सजाई,
दिल मे फिर से जीने की उम्मीदें जगाई ,
सोचा था इसी से अपनो को खुश रखेंगे,
पर हमारी ये फ़ितरत हमारे अपनो को ही रास न आई।
✍️वैष्णवी गुप्ता
कौशांबी