“हमारी उपस्थितियों का एहसास”
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
=======================
जिस तत्परता से मित्रों की टोलियाँ बनाने में एक ज्वालामुखी हमारे सिने मेँ धधकती है उसी तत्परताओं के साथ उसके रूप बादल जाते हैं और मित्रता सुसुप्तता के अंधेरी कोठरियों मेँ मानो कैद हो जाती है !
इने -गिने लोग ही अपनी सजगता और कर्मठता का एहसाह लोगों के इर्द -गिर्द बिखेरा करते हैं बरना अधिकांश लोग न जाने कुम्हकर्ण बन जाते हैं और वर्षों -वर्षों तक नेपथ्य मेँ विलीन हो जाते हैं ! हमारी सजगता ,हमारी प्रतिक्रियाएं,समलोचनाएं और टिप्पणियों के प्रदर्शन से ही हमारी उपस्थितियों का एहसास होता है !
आज यदि गूगल के प्रतिबंध ना होते तो न जाने सबके पास कौरव सेना होतीं ! और हम गर्व से लोगों को कहते हम परमाणु शस्त्रों से सुज्जजित हैं !
नेपोलियन बोनापार्ट को अपने सभी सैनिकों का नाम उन्हें कंठस्थ याद था ! सबों को नाम लेकर ही वे पुकारा करते थे ! हम आजकल अपने को फेसबूक कुरुक्षेत्र के सेनापति कहते हैं पर कुछ लोगों को छोडकर बहुत सारे लोगों को ना पहचानते हैं ना जानते हैं ! उनका घर कहाँ है ? वे करते क्या हैं ? और ना जाने उनकी पसंद ,आदत इत्यादि क्या हैं ? ……..
जब तक हम कुछ लिखेंगे नहीं …..पढ़ेंगे नहीं ….प्रतिक्रियों को उजागर नहीं करते रहेंगे …हमारी उपस्थिति नग्नय मानी जाएगी और हम मित्रों की सूची मेँ ही उलझते रह जाएंगे !
===========================
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
एस .पी .कॉलेज रोड
नाग पथ शिव पहाड़
दुमका
झारखंड
भारत