हमारा हौसला इश्क़ था – ग़ज़ल
– ” हमारा हौसला इश्क़ था ” -( ग़ज़ल )
याद ने उनकी जहां जहां क़दम बढ़ाये हैं ।
अश्कों ने मेरे वहां वहां ग़लीचे बिछाये हैं ।।
क्या करें.. हम अपनी आँखों का हमदम ।
ख़्वाब इसने हमें बेहद हसीन दिखाये हैं ।।
डर लगने लगा है अब तो वस्ल से हमको ।
हम बदनसीब……. तो हिज्र के सताये हैं ।।
हमारा हौसला इश्क़ था… सफ़र में यारों ।
रास्ते के पत्थर……. ख़ुद हमने हटाये हैं ।।
लेते हैं इम्तिहान मेरी दोस्ती का “काज़ी ” ।
दुश्मनों से भी रिश्ते शिद्दत से निभाये हैं ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
©काज़ीकीक़लम ©काज़ी
28/3/2, अहिल्या पल्टन , इकबाल कालोनी
इंदौर , जिला – इंदौर , मध्यप्रदेश …..