“हमारा सब कुछ”
जब तुम कहते हो ना
मैं तुम्हारे साथ रहूँगी/रहूँगा
चाहे “कुछ” भी हो जाए
तब इस “कुछ भी” के दायरे में आता है
तुम्हारा और उसका “सब कुछ”….
अमीरी, गरीबी
सफलता,नाकामयाबी
बीमारी,बेरोजगारी,
तुम्हारा सब कुछ….
माँ के आँसू
पिता की बेरुखी
परिवार की नाराज़गी
समाज से बेदखली
चिता की आग
अचानक से आया
सुन्दरता में दाग
धर्म, जात,पात या
किसी बेहतर से मुलाकात
सब कुछ….
उम्र का फासला
शरीर की बनावट
किसी बात की अधिकता
या किसी चीज का अभाव
किसी की नफरत
या किसी से लगाव
सब कुछ….
मीलों की दूरियाँ
काम में मशरूफ़ियत
दोस्त से दूरी
या किसी भी तरह की मजबूरी
“सब कुछ”
इस “कुछ भी” के दायरे में…..
आता है तुम्हारा और उसका “सब कुछ”…….
“इंदु रिंकी वर्मा”