हमारा भी दिन है क्या?
हमारा भी दिन है क्या इस जहां में?
आज पता चला की है।
जरा बताइए है क्या?
मालूम यही था फलाना डे , ढेमाका डे।
पूरे साल सुनने में आता है डे डे डे।
आज ब्राह्मण दिवस है पता चला ।
मन भी खुशी से हो गया मनचला।
पर जेहन में ,एक सवाल उभरता है ।
आखिर हमारे पर को ,कौन कुतरता है।
कहने को हम सामान्य ,पर व्यवहार असमान्य।
औरों का 89 सहर्ष मान्य और हमारा 110 अमान्य।
आखिर हमारे साथ ये नाइंसाफी बदसलूकी क्यों हैं।
10 साल वाला आरक्षण ज्यों का त्यों क्यों है।
हमारे वर्ग के माननीय ,हमारे बारे में सोचते हैं क्या?
क्या संसद में हमारी परेशानियों को ,करते हैं बयां?
अभी देखना ,कितने साहब लोग हमें बधाई देते हैं।
वोट के लिए शायद दे भी दें ,पर अंत मे रुसवाई देते हैं।
उच्च बुद्धि वाला ब्राह्मण मन्दबुद्धि के इर्द गिर्द है।
हमारा हक औऱ स्वप्न ,अब तो ख़ाक -ए-सुपुर्द है।
फिर भी दिन जब है अपना ,तो लाख मुबारक़बाद हमें।
काश के कोई नेता आये और कर जाए आबाद हमें।
-सिद्धार्थ पाण्डेय