हमारा प्यारा रॉकी
कहानी-हमारा प्यारा रॉकी
यह उस समय की बात है जब हम छोटे थे। एक दिन मेरा भाई जो हम तीन बहनों में सबसे छोटा था,अपने दोस्त के यहाँ से एक छोटा सा पपी ले आया। वो शायद छः-सात दिन का ही था। भूरा रंग,बड़ी बड़ी आँखे, मासूम चेहरा जिससे हमारी निगाहें ही नहीं हट पा रही थी। पहले दिन वो बहुत रो रहा था,शायद अपनी माँ को याद कर रहा था। इसलिए हम सब उसको बारी बारी से अपनी गोद में रख रहे थे,लेकिन वो स्वयं को सबसे ज्यादा सुरक्षित हमारी माँ की गोद में कर रहा था क्योंकि वो उसको बहुत ही प्यार से और सावधानी से संभाल रही थी। हम सबने उसका नाम रॉकी रख दिया।
कुछ ही दिन में वो हम सबके साथ घुलमिल गया और अपनी शरारतों से हम सबका दिल जीत लिया। मुझे अभी भी अच्छे से याद है, जब भी हम चारों भाई बहनों में से कोई भी माँ की गोद में बैठते,वो दौड़कर आ जाता,हम सबको हटाकर खुद माँ की गोद में बैठ जाता और हमे जताने की कोशिश करता कि हमारी माँ पर उसका हक सबसे ज्यादा है। उसकी ऐसी हरकतें हम सबको बहुत अच्छी लगती थी। हमारी माँ से उसे सबसे ज्यादा लगाव था और हो भी क्यूँ न! वो उसका ध्यान भी बहुत रखती थी। यदि कभी रॉकी की तबियत खराब हो जाती,तो वो उसकी पूरी तीमारदारी में लग जाती,उस समय घर में उसके लिए मूँग की दाल की खिचड़ी बनती,और उसको दही के साथ दी जाती,ताकि वो अच्छे से खा सके।
वक़्त के साथ उसकी शरारतें बढ़ती गयीं।
हमारे पिताजी स्वभाव से थोड़ा सख्त थे,इसलिये उनके सामने वो सीधे बच्चे की तरह चुपचाप बैठ जाता और पापा के जाते ही फिर वही शरारतें।
यदि हमारे घर में कोई आता,तो वह उनको परेशान नहीं करता था और सूंघकर चुपचाप हट जाता। एक बार हमारे घर एक आंटी आयी और रॉकी उनपर लगातार भौंकने लगा।हमें समझ नही आया कि इसको अचानक क्या हो गया। पापा के डाँटने पर भी चुप नही हुआ। अचानक मम्मी ने आंटी को उनकी शाल हटाने को बोला और अपने पास रख ली। फिर क्या था!रॉकी शांत होकर बैठ गए। हम उसकी समझदारी को देखकर दंग रह गए। हुआ यह था कि आंटी जैसी ही शाल मेरी माँ के पास भी थी,और उसको लगा कि आंटी ने माँ की शाल ले ली है। यह घटना आज भी मुझे हर्षविभोर कर देती है।
जब मेरी सबसे बड़ी बहन का अल्पआयु में ही देहांत हुआ,तो पूरा परिवार शोकग्रस्त था,
साथ ही हमारा बेजुबान रॉकी भी बिल्कुल शांत हो गया था,उसकी नम आंखों में यह दुख साफ साफ दिखाई दे रहा था। दो दिन तक उसने कुछ भी नहीं खाया पीया।बस चुपचाप एक कोने में पड़ा रहा। हम सब अपनी बहन और मम्मी पापा अपनी बेटी के खोने का दुख बर्दाश्त नही कर पा रहे थे।
वो बारी बारी से हम सबके पास आता और प्यार से चाटने लगता,जैसे हम सब को सांत्वना देने का प्रयत्न कर रहा हो। सबसे ज्यादा वो हमारी माँ का ध्यान रखता,जब भी वो रोती थी,उनके पास जाकर प्यार से बैठ जाता था।
समय का पहिया आगे बढ़ता गया। मेरी बड़ी बहन की शादी हो गयी और मेरा छोटा भाई आई आई टी मुंबई पढ़ने चला गया। अब घर में मम्मी,पापा, मैं और रॉकी रह गए थे।
रॉकी का घर में मन नही लगता था और ज्यादातर घर के बाहर ही बैठा रहता। यूँ तो वह कुछ नहीं करता था,परन्तु कॉलोनी के लोग उसको खुला देखकर डरते थे ।
एक दिन हमारे पड़ोस में एक अंकल हमारे पिताजी से बोले कि वो रॉकी को अपने पोल्ट्री फार्म ले जाना चाहते हैं, हम लोगो ने बेरूखे मन से हामी भर दी। वो उसको किसी तरह से अपनी वैन में बैठाकर पोल्ट्री फार्म ले गए,लेकिन वो वहाँ से दो दिन में ही भाग निकला।जब हमको उसका पता चला,तो हम सब बहुत व्यथित हो गए। हर समय यही सोचते रहते,कि बेचारा कहाँ होगा,किस हाल में होगा।
एक दिन हमारी माँ और पिताजी कहीं से वाइक पर वापस आ रहे थे,अचानक एक कुत्ता उनकी वाइक के पींछे दौड़ने लगा। हमारी माँ ने पापा को वाइक रोकने को बोला,उन्हें लगा कि वो रॉकी है। परन्तु पापा ने इसको उनका बहम समझकर अनदेखा कर दिया।उन दोनों के घर आने के क़रीबन एक घण्टे बाद रॉकी दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया,और धीरे धीरे भौंककर आवाजें देने लगा। उसकी हालत बहुत ही दयनीय थी,पोल्ट्री फार्म से भागने के लगभग बीस दिन बाद वो घर वापस आया था, शरीर पर अनगिनत जख्म लिये वो एक हड्डियों का ढाँचा प्रतीत हो रहा था। मेरी माँ ने उसकी कई दिनों तक सेवा की और उसकी मरहम पट्टी की, कुछ दिनों में वो ठीक हो गया।
इस घटना के एक वर्ष बाद उसकी मृत्यु हो गई और उसकी मृत्यु का हम सबको बहुत दुख हुआ।
हालांकि वह हमारे घर में लगभग सात वर्षों तक रहा,लेकिन हमारी स्मृति में वह अभी भी जीवंत है।
By:Dr Swati Gupta