हमारा अन्नदाता
कोई रिक्शा चला कर पेट भरता है,
तो कोई हाथ फैलाकर ।
कोई व्यापार कर घर चलता है ,
तो कोई चाकरी कर ।
भूखा तो कोई नहीं रहता !
लेकिन दुविधा तो देखिए – देश का किसान
जी तोड़ मेहनत करके
जो सबका पेट भरता,
वो दाने-दाने को तरसता ।
कुदरती,गरीबी ,मुफ़लिसी और सरकारी नीतियों का मारा ।
क्या करें बेचारा,
कहलाता है – अन्नदाता हमारा ।