हमसफ़र नहीं क़यामत के सिवा
ख़्वाहिशें और भी हैं, ज़िंदगी के सिवा,
मोहब्बतें और भी हैं, आशिक़ी के सिवा।
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हज़ारों की महफ़िलें, हज़ारों के मज़मे,
नज़र कुछ आता नहीं, ख़ुदाई के सिवा।
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हिसाब सांसों का मांगने लगी है, ज़िंदगी,
हम तो कर ही क्या पाए, इश्क़ के सिवा।
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मेरे मुल्क़ को पनपते देखना, बुलंदियों तक,
हमने सजदा कहीं किया नहीं, मुल्क़ के सिवा।
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बेशकीमती एक शेर कहता हूँ, शिद्दत से पढ़ना,
ज़िंदगी का कोई हमसफ़र नहीं, मौत के सिवा।