हमराह
बन दो दिन हमराह हमें तन्हां छोड़ चले,
बेक़सी के आलम में आँख नम छोड़ चले,
शिद्द्त से चाहा था हमनें अँधेरा छोड़ चले,
बीच राह में यूँ क्यों हमें बेबस छोड़ चले।।
मुकेश पाटोदिया”सुर”
बन दो दिन हमराह हमें तन्हां छोड़ चले,
बेक़सी के आलम में आँख नम छोड़ चले,
शिद्द्त से चाहा था हमनें अँधेरा छोड़ चले,
बीच राह में यूँ क्यों हमें बेबस छोड़ चले।।
मुकेश पाटोदिया”सुर”