हमऩवा
ज़िंदगी के सफ़र मे अकेले थे हम ।
जब तुम मिले तो हमऩवा मिल गया।
राह मुश्किल थी सफ़र मे आसान हो गई ।
तुम बने हमसफ़र तो क़ुदरत भी म़ेहरबान हो गई।
तुम्हारी इऩायत से हुए रोश़न ये ज़िंदगी के अन्धेरे ।
खुश़गवार बन गए तुम्हारी म़ोहब्बत से हर मरहले ।
हम अब तक भटकते रहे ग़मगीन ख़िज़ाओं में ।
छा गई ख़ुशी की बहार तुम्हारे आ जाने से फ़िजाओं में ।