हमने सोचा इस दिल में, तन्हाईयाँ सजने को है l
हमने सोचा इस दिल में, तन्हाईयाँ सजने को है l
हमने सुना उनके यहाँ, शहनाईयाँ बजने को है ll
प्रीत बस ये कहे, मुझको मेरो ने दी रूसवाइयाँ ।
अब तो प्रीत गीत गजल ओ रूबाइयाँ ढलने को है ।।
इश्क था तो, मस्ती मस्ती भरी कठिनाईयाँ थी l
बिछुडन बाद तो, कई नव कठिनाईयाँ बनने को है ll
कभी चढने को, कभी ढलने को ओ कभी बदलने को l
न जाने समय, क्या कैसे, अंगड़ाईयाँ लेने को है ll
जमाना गम देने खुश होने खेल देखे खेले है l
जमाना तो रुसवाईयाँ कमाईयाँ लेने को है ll
ये जालिम इश्क, धडकन बढा, नींद उड़ा, चैन उड़ा कर l
जम कर, जम्हाईयाँ ही जम्हाईयाँ लेने को है ll
एक गर छोड़ जाये, बस रुसवाईयाँ होने को है l
यहाँ कोई न, आशिक की तन्हाईयाँ लेने को है ll
इश्क ने इतने गम दिए, कि अब गम बिन जीवन न भाये l
प्यास में पागल घायल, ना दवाईयाँ लेने को है ll
अरविन्द व्यास “प्यास”