हमने माना अभी अंधेरा है
(17)
हमने माना अभी अंधेरा है।
पास लेकिन बहुत सवेरा है।।
मैल दिल में कोई नहीं रखना।
दिल में रब का अगर बसेरा है ।।
छीन लेता है साथ अपनों का।
वक़्त वो बे’रहम लुटेरा है ।।
सब मुसाफिर हैं मैं भी औ तू भी।
ये जहाँ तेरा है न मेरा है ।।
जा के बैठेगी अब कहाँ तितली ।
फूल है और मेरा चेहरा है ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद