हमनवां जब साथ
हमनवां जब साथ हो तो
बात कुछ और ही होती है
सिर्फ लम्हों को ही नहीं औरों
को भी इसकी खबर होती है
द्रुपदसुता की चीर से बढ़ जाते
यादों और बातों के सिलसिले
फिर चलचित्र सा याद आता सब
कुछ, कहां, कब कौन लोग मिले
कथा सुनाकर नए किरदारों की
करते आपस में हंसी ठिठोली
दीवाली और होली पे चर्चा को
कहां मिले कब कैसे हमजोली
बीच बीच में घर वालों का भी
करते जाते सब थोड़ा बहुत जिक्र
बातों बातों में जताते जाते वे
अपनी उलझनों की भी फिक्र
रुसवाई और तन्हाई की बातें भी
होती हैं पूरे निर्मल मन के संग
चर्चाओं की चकल्लस को तरसें
जग के बड़े बड़े से मस्त मलंग