हमदम
मुक्तक – हमदम
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नहीं तुझसे कोई शिकवा,नहीं कोई गिला हमदम।
मेरे तकदीर में खुशियों का,अवसर भी मिला है कम।
किसे मैं दोष दूँ पूनम , मेरे हालत को लेकर।
सदा काँटे ही उगते है,महकता गुल खिला है कम।
मजा आता नहीं अब तो,कहीं अब जाम पीने में।
नहीं अब तो बचा कुछ भी,मेरे मरने में जीने में।
सताती है मुझे हरपल, तेरी ही याद के साए।
कहाँ तु खो गई पूनम,लगाकर आग सीने में।
तेरे मन में भरा है क्या,नहीं मैं तौल पाता हूँ।
पिटारा दिल के दर्दो का,नहीं अब खोल पाता हूँ।
तुझे रब की तरह पूजूँ, तेरा ही गीत गाता हूँ।
मगर तुझसे कभी पूनम,नहीं मैं बोल पाता हूँ।
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डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”✍️✍️