हमको भी अपनी मनमानी करने दो
हमको भी अपनी मनमानी करने दो
हमें अकेलेपन को थोड़ा भरने दो
सूरज की आँखों से पर्दा अभी हटा है
घिरा हुआ घनघोर कुहासा तभी छटा है
धूप ठिठुरते मन में जरा उतरने दो
हमको भी अपनी मनमानी करने दो
बहुत कर चुके चिंतन कितना और करें हम
कब तक इस जालिम दुनिया से और डरें हम
मुक्त गगन में कुछ तो हमें विचरने दो
हमको भी अपनी मनमानी करने दो
अच्छे दिन की खुद को कब तकआस बंधाएँ
सता- सता कर खुद को कब तक पीर बढ़ाएँ
बिखर रहे हैं हमको जरा सँवरने दो
हमको भी अपनी मनमानी करने दो
करते -करते काम निगोड़ी उमर गुज़ारी
मिली न फुर्सत रहीं व्यस्तताएं यूँ भारी
मन की गलियों में इक बार गुजरने दो
हमको भी अपनी मनमानी करने दो
पता नहीं ये करनी किस्मत की है कैसी
हमें मिली है सज़ा मुहब्बत की है कैसी
जीते जी अब हमें नहीं यूँ मरने दो
हमको भी अपनी मनमानी करने दो
डॉ अर्चना गुप्ता
09.11.2024