जाड़े ने डाला है डेरा
थर थर थर थर कांप रहे हैं
आग जलाकर ताप रहे हैं
ऐसा जाड़ा क्यों है आता
हमको तो गरमी ही भाता
जाड़े ने डाला है डेरा
ढूंढ रहे सब स्वेटर मेरा.
स्वेटर, टोपी और रजाई
क्यों सबको तड़पाते भाई
रहो यहाँ न यहाँ से जाओ
हमको ना इतना तड़पाओ
हम बच्चे अब खेलें कैसे
मत बन जाओ निष्ठुर ऐसे
तुमसे है फरियाद हमारा
भूलें न उपकार तुम्हारा
बात हमारी तुमने मानी
गाएंगे हम यही कहानी
जटाशंकर”जटा”
०८-०१-२०२०