हमको आजमानें की।
पेश है पूरी ग़ज़ल…
सबको पड़ी है बस हमको आजमानें की।
फिक्र ना है किसी में हमको अपनानें की।।1।।
हर कतरा अश्क का समन्दर सा होता है।
कुव्वत है शबनम में शोले को बुझाने की।।2।।
क्या रोना किसी के छोड़कर यूं जाने पर।
जहां में ज़िंदगियां होती हैं आने जाने की।।3।।
किसपे करें अकीदा सब एक से लगते है।
सबकी ही कोशिशें हैं हमको मिटानें की।।4।।
धड़कनों को तुम्हारी कमी खलने लगी है।
मिली है सजा तुमसे हमें दिल लगाने की।।5।।
इश्क में हस्ती बेचैन होती है मिट जानें को।
आशिकी लगी रहती है सनम को पानें की।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ