हनुमान जी की सुग्रीव वार्ता
हनुमान वचन
घनाक्षरी छंद
करते न राम काज,तो भी कोई बात न थी,
कभी-कभी करने की घोषणा तो करते।
बनाया था भक्ति भाव, भक्ति भले न दिखाते,
भक्ति जैसी वानरो में, भावना तो भरते।
रंक से राजा हुए थे,वे दिन तो भूलते न,
पीड़ित की पीर को भले ही नहीं हरते।
कभी-कभी जयसिया राम कर लेते नृप,
भोगवादी नदिया में डूबके न मरते ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश