हद होती है
आखिर कब तक सहेगा कोई , सहने की भी हद होती है .
ज़ुल्म करे वो , सहन करें हम , दबने की भी हद होती है .
प्रेम की भाषा जो ना समझे , उससे प्यार बढ़ाना क्या ?
जो सच को भी झूठ बना दे , उसको साक्ष्य दिखाना क्या ?
बातचीत का मंथन कितना , मथने की भी हद होती है .
आखिर कब तक सहेगा कोई , सहने की भी हद होती है .
नहीं – नहीं अब और नहीं , अबकी तुम्हें न छोड़ेंगे .
जिससे तुम बम फेंक रहे हो , वही हाथ अब तोड़ेंगे .
बहुत सुन लिये- बहुत कह लिये , कहने की भी हद होती है .
आखिर कब तक सहेगा कोई , सहने की भी हद होती है
सौ गलती पर केशव ने भी , चक्र सुदर्शन उठा लिया .
तेरी गिनती सौ से ऊपर , जब चाहा तब दगा किया .
चुप्पी की भी मर्यादा , चुप रहने की भी हद होती है .
आखिर कब तक सहेगा कोई , सहने की भी हद होती है
….. सतीश मापतपुरी