Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
15 Jul 2023 · 5 min read

हतभाग्य

कई बार इंसान चाहते हुए भी किसी और की मदद नहीं कर पाता। छोटी सी मदद भी बड़ी बन कर सामने ऐसे रास्ता रोक लेती है कि वो बहुत ही बड़ा लगने लगता है। उस समय इंसान एकदम से असहाय और विवश हो जाता है।
यही तो हुआ था राधिका के साथ। कितनी बड़ी विडंबना थी कि वह अपने आँखो के सामने देखते हुए भी सब कुछ जानते सुनते हुए भी न चाहते हुए भी उसी कतार में खड़ी हो गई।
अभी उसे तीन महीना ही हुए थे कॉलोनी में किराए के मकान में आए हुए। उस कॉलोनी की खासियत थी कि बहुत से GDA के मकान खाली थे।ऐसा लगता था कि भूत लोट रहे हों। घुप्प अँधेरा,सुनसान होने के कारण कुछ- कुछ भयावह भी लगता थ। कुछ लोग खाली फ्लैट्स को कब्ज़ा करके चौड़े होकर रह रहे थे।कई सालों से परिवार सहित। कोई सुध लेने वाला नहीं था। उस एरिया में थोड़े कम किराए में फ्लैट्स मिल जाते थे। तभी तो राधिका नोएडा जैसे महँगे स्थान को छोड़कर वहाँ किराए पर रहने आई थी। कुल मिला कर पाँच या छः परिवार ही लीगली तरीके से अपने फ्लैट्स में या किराए पर रह रहे थे। कब्ज़ा करके रहने वालों में कुछ जीडीए के फोर्थ क्लास के कर्मचारी, दिहाड़ी पर काम करने वाले मज़दूर वर्ग तो कुछ सब्जी के ठेले वालों का परिवार तो कुछ ऐसे परिवार थे,जो घरों में चौका बर्तन करके अपना जीवन यापन कर रहे थे। कुछ फ्लैट्स में केवल कुत्ते बिल्ली जैसे जानवर अपना बसेरा बना लिए थे। कई बार राधिका के घर कोई मिलने जुलने वाले आते तो उन खाली पड़े अंँधेरे घरों को दिखा कर उसका बेटा डराते हुए मज़ा लेता था,देखो! ये सब भुतहा है। अचानक शाम के समय तो चमगादड़ भी दिख जाते थे। सचमुच में शाम के बाद बहुत देर तक अपनी बालकनी में खड़े रहने में घबराहट सी होती थी। स्ट्रीट लाइट भी तो नहीं थी।
मज़दूर वर्ग और सब्ज़ी वालों की स्थिति बहुत ही बुरी थी। उन घरों से अक्सर लड़ाई झगड़े की तेज़ आवाज़ आती थी। पीने पिलाने के मुद्दे पर या पानी को लेकर, कभी कभी तो बिना वजह भी रोना-चिल्लाना, मार पीट लड़ाई झगड़ा और शोर शराबा होता रहता था। रात में विशेष रुप से। अक्सर रात में पुलिस वाले भी आ धमकते थे।
अक्सर कोई शिकायत कर देता था तो पुलिस उठा कर ले जाती थी। कई बार फ्लैट्स के वाशिंदे उनके कारण होने वाली परेशानी से तंग आकर रिपोर्ट लिखवा देते थे। पुलिस आती निकालने की धमकी देती लेकिन उनकी साँठ गांँठ ऐसी होती कि केवल दिखावे का डाँट- डपट करके चली जाती।
उस कॉलोनी महिलाओं में राधिका ही पब्लिक स्कूल में अध्यापिका की नौकरी करती थी। स्कूल काफ़ी दूर होने के कारण सुबह पौने छः बजे निकल कर शाम तक ही आ पाती थी। इसलिए कॉलोनी में हो रहे किसी भी गतिविधि का प्रत्यक्ष रुप से साक्षी नहीं होती थी। इतना ज़रूर था कि उसे कोई न कोई बता देता था,विशेष रुप से काम वाली से पता ज़रूर चल जाता था। वैसे स्वभावत: कॉलोनी की गतिविधियों में उसकी कोई रुचि नहीं थी। हां! आमने सामने और अगल बगल के बच्चों को पढ़ाई लिखाई से संबंधित मदद करने के कारण बच्चों के साथ उनकी मम्मियों से जान पहचान हो गई थी। थोड़ी बहुत बातचीत उनसे आते- जाते रास्ते में खड़े- खड़े हो जाया करती थी । राधिका के पास समय ही कहांँ था कि वो बैठती किसी के पास।
एक दिन स्कूल जाते समय सीढ़ियों से नीचे उतरते ही रोने की आवाज़ सुनाई पड़ी, चलते चलते किसी से पूछने पर पता चला कि सब्ज़ी वाली का पति मर गया। राधिका ने कुछ भी और न जानने की जिज्ञासा दिखाए बिना ही स्कूल चली गई। उस दिन शनिवार होने के कारण जल्दी छुट्टी हो गई थी। इसलिए उस दिन उसका दुपहर में ही आना हो रहा था। कॉलोनी में घुसते ही गजब की भीड़ लगी थी। सभी रहनवासी अपनी -अपनी बालकनी से आधा धड़ लटकाए खड़े थे। मानो कोई बारात देख रहे हों। राधिका भी बिना इधर -उधर देखे चुपचाप घर चली आई। घर में घुसते ही काम वाली आ गई बहुत ही हिकारत और भरपूर संवेदना से लवरेज कहने लगी चि चि चि क्या ज़माना आ गया है!किसी ने कफ़न तक ना दियो। उसने बताया कि सब्ज़ी वाले की पत्नी ने पूरी कॉलोनी में कफ़न के लिए चंदा माँगा लेकिन किसी ने दिया तो कुछ नहीं बल्कि सुनाया भी सबने। जैसे तुम लोग मुफ्तखोरी में रहते हो वैसे मरते भी हो। ज़रा सी खाँसी में कोई मरता है क्या? राधिका अब सचेत हुई उसके कान खड़े हो गए। वो बोले जा रही थी कि ठेले की सब्ज़ी सारी सड़ गई रात भर में गर्मी के कारण। सब्ज़ी फेंक कर ठेले पर बोरे को काट कर कफ़न डाल कर शमशान ले गए हैं। सब तमाशा देख रहे थे, लेकिन कोई आगे नहीं बढ़ा एक रुपया भी किसी ने ना दिया। उस दिन राधिका हर हाल में कुछ सुनना नहीं चाहती थी, चाहती थी तो केवल कुछ रुपया 100 रुपए ही सही भिजवा दे। लेकिन हतभाग्य, कि उसके पास 100 रुपए भी नहीं थे कि वो दे पाती। बैंक इतनी जल्दी जाकर लाना संभव नहीं था। वक्त और भाग्य की विडंबना तो देखिए कि राधिका को भी उसी पंक्ति में शामिल होना पड़ा। बोरे के कफ़न में वो 5 रुपए तक नहीं लगा सकी। विवश होकर उसने अपने बेटे को फ़ोन किया, बेटे ने बताया कि मैंने देखा लेकिन दुर्भाग्य कि मेरे पास भी उस समय नहीं था क्या किया जा सकता है? परेशान मत होइए। राधिका के पास पूरे घर में चहलकदमी करने और मानसिक रुप से थकने के अलावा कोई चारा नहीं था। उसे लग रहा था कि आज 100 का पत्ता भी इतना बड़ा हो गया है? आज हाथ में जो भी जितना भी होता हम दे देते। लेकिन कुछ भी कर पाने में पूरी तरह असमर्थ थी। कुछ भी और नहीं सोच पा रही थी। बस बेचैन थी। बाद में पता चला कि मरने वाले को टीबी थी जिसकी वो दवा नहीं करवा पा रहा था। आज भी वो घटना राधिका के दिमाग़ में हतभाग्य बन कर बेचैन करता है। वो सोचती है कि बोरे के कफ़न में जाने वाले के साथ -साथ पूरी कॉलोनी और वो ख़ुद भी हतभागी है।

मंजुला श्रीवास्तवा
गाज़ियाबाद

Language: Hindi
1 Like · 61 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
छिपी हो जिसमें सजग संवेदना।
छिपी हो जिसमें सजग संवेदना।
Pt. Brajesh Kumar Nayak
सरकारी
सरकारी
Lalit Singh thakur
*शादी के खर्चे बढ़े, महॅंगा होटल भोज(कुंडलिया)*
*शादी के खर्चे बढ़े, महॅंगा होटल भोज(कुंडलिया)*
Ravi Prakash
जो कुछ भी है आज है,
जो कुछ भी है आज है,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
न मैंने अबतक बुद्धत्व प्राप्त किया है
न मैंने अबतक बुद्धत्व प्राप्त किया है
ruby kumari
*
*"नरसिंह अवतार"*
Shashi kala vyas
अनकहे अल्फाज़
अनकहे अल्फाज़
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
जून की दोपहर (कविता)
जून की दोपहर (कविता)
Kanchan Khanna
यादों को दिल से मिटाने लगा है वो आजकल
यादों को दिल से मिटाने लगा है वो आजकल
कृष्णकांत गुर्जर
वैसे थका हुआ खुद है इंसान
वैसे थका हुआ खुद है इंसान
शेखर सिंह
लोग बंदर
लोग बंदर
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
मुक्तक...
मुक्तक...
डॉ.सीमा अग्रवाल
*सखी री, राखी कौ दिन आयौ!*
*सखी री, राखी कौ दिन आयौ!*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
हर हाल में बढ़ना पथिक का कर्म है।
हर हाल में बढ़ना पथिक का कर्म है।
Anil Mishra Prahari
हरि हृदय को हरा करें,
हरि हृदय को हरा करें,
sushil sarna
साथ था
साथ था
SHAMA PARVEEN
!!!! सबसे न्यारा पनियारा !!!!
!!!! सबसे न्यारा पनियारा !!!!
जगदीश लववंशी
जवाबदारी / MUSAFIR BAITHA
जवाबदारी / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
मुफलिसों को जो भी हॅंसा पाया।
मुफलिसों को जो भी हॅंसा पाया।
सत्य कुमार प्रेमी
■ तमाम लोग...
■ तमाम लोग...
*प्रणय प्रभात*
यादों के छांव
यादों के छांव
Nanki Patre
मोबाइल महात्म्य (व्यंग्य कहानी)
मोबाइल महात्म्य (व्यंग्य कहानी)
Dr. Pradeep Kumar Sharma
चिंतन और अनुप्रिया
चिंतन और अनुप्रिया
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
आंसूओं की नमी का क्या करते
आंसूओं की नमी का क्या करते
Dr fauzia Naseem shad
*बिरहा की रात*
*बिरहा की रात*
Pushpraj Anant
जब तू रूठ जाता है
जब तू रूठ जाता है
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
मेरे दिल की गहराई में,
मेरे दिल की गहराई में,
Dr. Man Mohan Krishna
ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
रोगों से है यदि  मानव तुमको बचना।
रोगों से है यदि मानव तुमको बचना।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
करपात्री जी का श्राप...
करपात्री जी का श्राप...
मनोज कर्ण
Loading...