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9 Aug 2022 · 1 min read

हटी तीन सौ सत्तर की, अलगाववाद की धारा

हटी तीन सौ सत्तर की, अलगाववाद की धारा है (हिंदी गजल )
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हटी तीन सौ सत्तर की, अलगाववाद की धारा है
एकीकरण हुआ भारत से, अब कश्मीर हमारा है (1)

भूल ऐतिहासिक थी जो, हम संविधान में कर बैठे
सत्तर सालों बाद भूल को, हमने आज सुधारा है (2)

जन गण मन का गान कर रही, काश्मीर की घाटी है
गूँज रहा हर ओर सिर्फ, भारत माँ का जयकारा है (3)

दो विधान दो संविधान की, बातें हुईं पुरानी अब
काश्मीर में सिर्फ तिरंगा, झंडा सबको प्यारा है (4)

जो कानून बनेगा लागू, काश्मीर में भी होगा
अलगाववाद का बोल बेसुरा, हमने पूर्ण नकारा है (5)

जन-विकास की शुरू हो गई, काश्मीर में यात्रा शुभ
झाँक रहा अब नई सुबह का,मनभावन उजियारा है (6)

रहे चीखता दुनिया भर में, भले पाक बदनीयत
हमने अपने काश्मीर में, मॉं का मुकुट सॅंवारा है (7)
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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