*हजारों हादसों से रोज, जो हमको बचाता है (हिंदी गजल)*
हजारों हादसों से रोज, जो हमको बचाता है (हिंदी गजल)
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1)
हजारों हादसों से रोज, जो हमको बचाता है
हमारी नाव का मॉंझी, हमेशा से विधाता है
2)
न जाने कौन गड्ढे में, अभी तक गिर चुके होते
दया का एक सागर है, हमें जो खींच लाता है
3)
हमारे साथ रहता है, मगर हमको नहीं दिखता
न जाने किस तरह उसका, हमारे साथ नाता है
4)
सुना है एक लघु प्रतिबिंब, उसका सबके भीतर है
मगर बिरला ही है कोई, उसे जो देख पाता है
5)
भले स्वाधीन हैं हम सब, खुशी से कर्म करने को
अटल विश्वास है मेरा, हमें ईश्वर नचाता है
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451