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29 Nov 2017 · 1 min read

हजारों तरह से नुमायाँ हुए है

हजारो किस्म से नुमायाँ हुए हैं

जहाँ से चले थे वहीँ पे खड़े है

निगाहे चुराना उन्होंने सिखाया

हमें भी नजारे कहाँ देखने हैं

जिन्होंने कभी लूटना नाहि छोड़ा

उन्हें क्या बताये उन्ही के धड़े हैं

तुम्हारा हमारा यहाँ क्या बचा है

चलो की यहाँ से रस्ते नापने है

हमें जी हजूरी नहीं ‘शौक’ जाओ

तुम्हारे लिए ही नहीं हम बने है

दण्डपाणि नाहक ‘शौक’

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