हजारों तरह से नुमायाँ हुए है
हजारो किस्म से नुमायाँ हुए हैं
जहाँ से चले थे वहीँ पे खड़े है
निगाहे चुराना उन्होंने सिखाया
हमें भी नजारे कहाँ देखने हैं
जिन्होंने कभी लूटना नाहि छोड़ा
उन्हें क्या बताये उन्ही के धड़े हैं
तुम्हारा हमारा यहाँ क्या बचा है
चलो की यहाँ से रस्ते नापने है
हमें जी हजूरी नहीं ‘शौक’ जाओ
तुम्हारे लिए ही नहीं हम बने है
दण्डपाणि नाहक ‘शौक’