हज़ारों साल
हज़ारों साल
हज़ारों साल से ये दिन, पड़ा है रात के पीछे ।
सितारों की न दौलत हो, कहीं इस बात के पीछे ॥
भला कोई तुम्हें क्यों, मोतियों के हार यूँ देगा
कहीं गरदन न फँस जाए, किसी सौगात के पीछे ॥
बरसते हैं, गरजते हैं, भरी बरसात में बादल ।
बिखरते हमने देखा है, उन्हें बरसात के पीछे ॥
तरस खाते हैं महफ़िल में, जो मेरी बदनसीबी पर ।
उन्हीं की मेहरबानी है, मेरे हालात के पीछे ॥
जो कहना मानते मेरा, फिसलने से तो बच जाते ।
तुम्हें तो पेंच दिखते हैं, मेरे जज़्बात के पीछे ॥
खुदा खैरात दे उनको, मुझे ख़ैरात वे देंगे।
ये दुनिया चल रही है, इस तरह ख़ैरात के पीछे ॥
सन्नाटा गहरा