हज़ारों के दिलबर ग़ज़ल विनीत सिंह शायर
ग़ज़ल ये आख़िरी हम पढ़ रहे हैं
हम उसको याद कर के मर रहे हैं
हमारे बाद क्या बोलेगी दुनियाँ
ये किस माहौल से हम डर रहे हैं
ग़ज़ल ये लिख रहे हैं आख़िरी अब
तुम्हारे नाम यह भी कर रहे हैं
लिखा था ख़त तुझे तन्हाई में जो
कहीं पे दफ़्न होकर सड़ रहे हैं
हमारा दिल हुआ ग़म से भी खाली
तुम्ही को याद कर के भर रहे हैं
इधर तन्हाई में मर गएँ उधर वो
हज़ारों के बने दिलबर रहे हैं
~विनीत सिंह
Vinit Singh Shayar