हंसी का रहस्य।
एक बार एक हास्य कवि सम्मेलन था। एक कवि ने एक हास्य कविता पढ़ी।सभा में बैठे सारे लोग खिल खिला कर हंस पड़े। फिर कवि ने सारे लोगों से हंसी का रहस्य पूछा।कि आप लोगों को क्या समझ में आया है कि आपको हंसी क्यों आईं हैं।तब एक व्याक्ति ने कहा कि मुझे हंसी नही आई है।तब कवि ने कहा आपको हंसी क्यों नहीं आईं। उसने कहा कि मुझे कुछ समझ नहीं आया है। इसलिए नहीं हंसा। ओर जिनको हंसी आई थी उनसे पूछा गया कि आपको हंसी क्यों आईं।एक व्यक्ति ने कहा कि मैं तो बगल में बैठा व्यक्ति हंसा उसे देख कर मैं हंसा। मेरे को भी कुछ समझ में नहीं आईं हैं। इसका मतलब था कि हमें समझ में नहीं आईं फिर भी हम हंसते हैं।