हँसी, मजाक और व्यंग्य मौसेरे भाई
***कुछ लोग भावनाओं से,
…..रहते है भरे हुए,
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एक दिन कुछ लोग
जा रहे थे
बीच सड़क पर
हँसते हुए,
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हमने भी
हँस कर कह दिया,
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हँसी भी बीच सड़क …चलने लगी,
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अनहोनी तो होनी है…हँसी रोने लगी,
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हँसना वह जो अंतस् से पैदा हो,
और खुद पर ही हँसने लगे,
बाहरी हँसी तो आयोजन है,
सोच-समझकर,
सामने वाले की बेज्जती कैसे करें,
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मजाक और व्यंग्य उसी के है मौसेरे भाई,
इसलिये सोच समझ कर अपनी इज्जत
महेंद्र खुद ही के हाथ में,
डॉ महेंद्र सिंह खालेटिया,