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25 May 2019 · 1 min read

हँस हँस कर बहते रहो (दोहा ग़ज़ल )

हँस हँस कर बहते रहो, जिधर समय की धार ।
करना है हर हाल में, ये भवसागर पार ।।

यहां तुम्हारी हार भी ,बन जाएगी जीत।
होगी हाथों में अगर,हिम्मत की पतवार ।।

रोने लगती आँख हैं, और उखड़ते पाँव ।
पड़ती है जब वक़्त की, बड़े जोर की मार ।।

समझा लो मन को जरा, भर जाएंगे घाव ।
फूलों में भी तो हमें, चुभ जाते हैं खार ।।

अच्छा होगा या बुरा, सभी समय के हाथ ।
पर ये देता भी दगा, नहीं किसी का यार ।।

करते हैं यदि “अर्चना’,पूर्ण लगाकर ध्यान ।
तभी सर्वशक्तिमान से, जुड़ते मन के तार।।

25-05-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद

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