हँस हँस कर बहते रहो (दोहा ग़ज़ल )
हँस हँस कर बहते रहो, जिधर समय की धार ।
करना है हर हाल में, ये भवसागर पार ।।
यहां तुम्हारी हार भी ,बन जाएगी जीत।
होगी हाथों में अगर,हिम्मत की पतवार ।।
रोने लगती आँख हैं, और उखड़ते पाँव ।
पड़ती है जब वक़्त की, बड़े जोर की मार ।।
समझा लो मन को जरा, भर जाएंगे घाव ।
फूलों में भी तो हमें, चुभ जाते हैं खार ।।
अच्छा होगा या बुरा, सभी समय के हाथ ।
पर ये देता भी दगा, नहीं किसी का यार ।।
करते हैं यदि “अर्चना’,पूर्ण लगाकर ध्यान ।
तभी सर्वशक्तिमान से, जुड़ते मन के तार।।
25-05-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद