मेघ-मेघ में धड़कनें, बूँद- बूँद में प्यार।
दाल गली खिचड़ी पकी,देख समय का खेल।
मैं खुद भी सोचता हूँ ये क्या मेरा हाल है; जिसका जवाब चाहिए,
बॉस की पत्नी की पुस्तक की समीक्षा (हास्य व्यंग्य)
गोरे तन पर गर्व न करियो (भजन)
क्षणिक तैर पाती थी कागज की नाव
मरूधर रौ माळी
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
स्त्रियां अपना सर तभी उठाकर चल सकती हैं
"" *श्री गीता है एक महाकाव्य* ""
त्यागकर अपने भ्रम ये सारे
अहाॅं बाजू नै बाजू पैर बजै पेजनियाॅं