“””””” सफ़र “””””””
न कभी भी ख्त्म होने
वाला सिलसिला
आ फ़िर से निकल
चलें उस सूनी सी
राह पर, जहाँ
न कभी कोई मन्जिल
न कोई अपना
बस बेइन्तेहा
इतेफ़ाक सा मिल
जाना किसी का
खत्म ही नहीं होता
है सफ़र जिंदगी का
छोड़ जाते हैं हम
इस देह को बस
यहीं सब के बीच
और आत्मा का
फ़िर सफ़र किसी
और सफ़र की ओर
ले जा रहा है
कोई अन्चाहत सा
बन इस रूह के साथ
न जाने कब??
खत्म होगा ये
सिल्सिल्ला सफ़र का
हर जीवन के साथ.
हर जीवन के साथ…
अजीत तलवार