सफ़र मुश्क़िल हुआ है और मैं हूँ
सफ़र मुश्क़िल हुआ है और मैं हूँ
अंधेरा भी घना है और मैं हूँ
अभी है लश्करे-तूफ़ान आगे
मेरा ये हौसला है और मैं हूँ
समां है रात का मंज़िल न दिखती
किनारा खो गया है और मैं हूँ
मोहब्बत अब तो यारों हो गई है
सज़ा या हादसा है और मैं हूँ
तेरी यादें मुसलसल आ रही हैं
अजब ये सिलसिला है और मैं हूँ
अभी टूटा नहीं , बिखरा नहीं मैं
गिरा तो आइना है और मैं हूँ
क़ज़ा भी सामने से आ रही है
ज़रा सा फ़ासला है और मैं हूँ
न जाने कब से वो अन्दर है मेरे
वही इक सिरफिरा है और मैं हूँ
मैं हूँ बदनाम पर ईमां पे क़ायम
ज़माने को पता है और मैं हूँ
मज़ा ‘आनन्द’ हर पल में छिपा है
ग़रीबी का मज़ा है और मैं हूँ
– डॉ आनन्द किशोर