स्व अधीन
स्वीकृति से पहले होगा तिरस्कार।
डटे तुम रहना मगर, न मानना हार।।
विरोधी आएंगे, तुम लेकिन तपस्वी बनना।
काला तम निचोड़ फेंककर, जाना सागर पार।।
जूते किस्मत के, नहीं पड़े अभी।
बैठना फुर्सत से, किसी दिन समझना कभी।।
आखिर हो कौन तुम? मैं तो नहीं।
क्या स्वप्न वहीं , संताप नवीन।।
जग सुंदर-सुंदर बोलेगा, अंदर बाहर कुछ डोलेगा।
कुछ कह कर के, कुछ रो लेगा।।
तुम स्व अधीन करना , मन को महीन करना।
पराधीन का स्वर चुप हो लेगा।
जब अंतर्पट ‘स्व’ खोलेगा।।
कलम तेरी शक्ति है ग़र।
क्यों हुआ था काले तम का असर?
असर को कर दे बेअसर
दिखा शक्ति, कि जीत कदमों पर।।
– ‘कीर्ति’