स्वीकृति
मुझको खारिज करते है जो
ये हक उनको मैंने दिया ही नहीं
जो मैंने महसूस किया है
उन्होंने तो वो महसूस किया ही नहीं।।
माना वो बहुत बड़े है
लेकिन वो इतने भी बड़े नहीं
सीख रहा था जब मैं चलना
तब भी तो थे वो साथ खड़े नहीं।।
खुद की तारीफ करते रहते हैं
औरों के लिए वक्त ही नहीं
दूसरों को भी कभी तवज्जो दे
उनकी फितरत में है ही नहीं।।
कहते है जो वो, बस है वही सही
दूसरों की बात की कोई कद्र नहीं
बनाकर अपनी टोली को ही दुनिया
समझते है उनसा कोई है ही नहीं।।
उन्हें तो बस जटिल शब्द चाहिए
उन्हें भावनाओं से सरोकार नहीं
कोई समझ पाए उन शब्दों को या नहीं
इस बात की भी कोई परवाह नहीं।।
होंगे सब एक जैसे दुनिया में
उससे भी बात बनेगी नहीं
होगा एक ही रंग इंद्रधनुष में गर
उसकी सुंदरता रहेगी नहीं।।
है सोच सबकी अपनी अपनी
किसी से कोई गिला ही नहीं
स्वीकार कर सके अलग सोच
ऐसा तो मिलता है मुश्किल से कहीं।।