स्वार्थ
दुल्हन की तरह सजी इस धरती को
मानव ने धीरे धीरे कर उजाड़ डाला
अपने स्वार्थ को पाने के लिए
मानव ने दूसरों का घर उजाड़ डाला
स्वार्थ इतनी भरी पड़ी है
कि अपनों को भूल जाते हैं
जब स्वयं पर आती है तकलीफे
तब दूसरों की याद आती है
मैं सोचता हूं मानव को ईश्वर ने क्यों बनाया
और बनाया तो इतनी लालच क्यों दे डाला
क्या लेकर आया था क्या लेकर जाएगा
जो अपने को न हो पाया
वह दूसरे को क्या हो पाएगा
दुल्हन की तरह सजी इस धरती को
मानव ने धीरे-धीरे कर उजाड़ डाला
सुशील कुमार चौहान
फारबिसगंज अररिया बिहार