स्वार्थ मुक्तक
स्वार्थ ही देखते तुम रहे उम्र भर।
आत्म सुख ढूढ़ते तुम रहे उम्र भर।
कर्म के युद्ध में जब पराजित हुए,
भाग्य को कोषते तुम रहे उम्र भर।
अभिनव मिश्र अदम्य
स्वार्थ ही देखते तुम रहे उम्र भर।
आत्म सुख ढूढ़ते तुम रहे उम्र भर।
कर्म के युद्ध में जब पराजित हुए,
भाग्य को कोषते तुम रहे उम्र भर।
अभिनव मिश्र अदम्य