स्वार्थ जीवन का गूढ़ विधान,
स्वार्थ जीवन का गूढ़ विधान,
समझना जिसे नहीं आसान !
स्वार्थ वश जुड़े सत्य सम्बन्ध,
आस के रचे जहाँ नव छंद
पतित छुद्रतम स्वार्थ अभिशाप,
बना जो नित जीवन को पाप,
रहे परमार्थ स्वार्थ निष्काम,
फूंकता जो जन जन में प्राण,
स्वार्थ जीवन का गूढ़ विधान,
समझना जिसे नहीं आसान !
आप को चरते पशु जग बीच,
स्वार्थमय जो कहलाते नीच,
रहे जो जीवन को गंभीर,
हरे ब्याकुलतम मन की पीर,
स्वार्थ भी जीवन को वरदान
रखे जो परहित का नित भान
स्वार्थ जीवन का गूढ़ विधान,
समझना जिसे नहीं आसान !