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20 Jul 2018 · 1 min read

सिद्धांत

सिद्ध सकल संकल्प रूप ले,
कोई उड़ जाता अम्बर में।
पर कोई कदम फूंक -फूंक कर,
रखता बीच डगर में।।
आभारों का भार चुकाना,
मुझको बहुत कठिन था।
मैं इंसानो के बीच रहा,
लेकिन रहा सदा अधर में।।
मंज़िल जटिल स्वार्थ मुश्किल है,
जब आया उन्हें समझ में।
जो साथ निभाने की कसमें ले,
आये साथ सफर में।।
भूल गए सब धर्म-कर्म,
जा बैठे अपने घर में।
अब भगवान दूर-दूर तक,
उनको आता नहीँ नज़र में।।
सिद्ध सकल संकल्प रूप ले,….

सिद्धांत (कविता)-सर्वाधिकार सुरक्षित,
स्व-रचित, द्वारा राजेन्द्र सिंह

Language: Hindi
486 Views
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