स्वार्थी मानव
ना चाहते हुए भी, आज खुश होगा आसमान,
वह धरती, वह हवाएं ख़ुशी से झूम रहा होगा
वह नदियां कि लहरें को, खुब उछलने का मन करता होगा,
आकाश पे राज़ करने कि ख़ुशी में,
वह परिंदा खुब जश्न मनाता होगा,
निल गगन के हर एक बादल ,
मन ही मन खुश होता होगा,
कहते हो आपस में, बड़ा दर्द दिया मानव ने हमें,
अब जड़ा चखें स्वाद ले अपने से जुदाई का,
सहन करे वह पीड़ा जो हर वक्त हमें,
खुश होगा वह जिव जन्तु जिन्हें मानव तड़पाता था,
पर , फिर भी ग़म के आंसु में,
वे दुआ करते होंगे कुदरत से,
वापस ले लो अपनी श्राप इन मुर्खो के उपर से,
हम इतने स्वार्थी नहीं जो खुश हो इनके विपदा पे
मन ना लगता है बिना इनके,
चाहे खुशियां खिले बगिया में।