स्वार्थी पंछी
यह कैसे पंछी है जो ,
हरे भरे वृक्ष को छोड़कर ,
चले जाते है और अधिक ,
दाना पानी की तलाश में।
क्या यह वास्तव में जरूरतमंद होते है ,
या लालच खींच ले जाता है ,
अपने आशियां से दूर नया आशियां बसाने को!
दिल में अगर संतोष हो तो ,
जरूरतें अपने घर में ही पूरी हो जाती है।
सुना है पराए घर के पकवान से ,
अपने घर की सुखी रोटी बेहतर है।
जिसमें मान सम्मान है स्नेह और अपनापन है।
मगर फिर क्यों जाते है यह पंछी ,
पराए देश में दाना पानी प्राप्त करने ?
क्या इन्हें अपने घर की याद नहीं आती ?
दाना पानी के नशे में सबकुछ भूल जाते है।
रिश्ते नाते और अपनी मिट्टी अपना मूल भी ।
हां ! इन्हें तब याद आती है जब कोई ,
विपदा आन पड़ती है ।
तब नहीं बांधता कोई आकर्षण ,
कोई लालच ।
तब अपनी जान के जो लाले पड़े होते हैं।
जब सामने मौत खड़ी हो ,
तब सुध आती है अपने असली घर की ।
और दौड़े आते है ,
उड़ान भरते है काफी तेज ।
अपने घर अर्थात वृक्ष की पनाह लेने को ।
भला ऐसे में कौन सी मां ,
पत्थर दिल होगी जो अपनी संतान को ,
अपने कलेजे से न लगाए ।
अतः मातृभूमि भी स्वीकार कर लेती है ,
अपने स्वार्थी ,भगोड़े और लालची ,
संतानों को ।
क्या करे मां तो मां होती है।
वृक्ष भी इन पंछियों की मातृभूमि है ,
उनकी मां है ,
कैसे न स्वीकारे अपनी जान बचाकर ,
भागती आई संतानों को ।
मगर क्या वोह इससे सबक लेंगे ?
की अपना घर अपना घर ही होता है ।
रूखी सूखी जो भी मिले ,
उसी में गुजारा करना चाहिए ।
नहीं ! यह स्वार्थी हालत बदलते ही ,
फिर अपनी नजरें बदल लेंगे ,
और फिर उड़कर नए बसेरे की चाह में ,
ठिकाना बना लेंगे ।
चंद दानों की खातिर ।