स्वार्थी इंसान
स्वार्थी इंसान
पाता हैं वो हर सुख-सुविधा,
हमेशा खुद ही के स्वार्थ के लिए।
न मोह -माया न कृपा-भाव हैं उसमें,
जीता हरदम झूठी शान के लिए ।
पड़ा हैं पूरा समुंदर पास उसके,
होता बेचैन बूँद भर जल के लिए।
करके उपेक्षा अमूल्य प्रतिभाओं की,
खोजे हैं साथी समानता वाली शान के लिए।
अरे मूर्खों!मिलेगी दिल को शांति कैसे?
जब कर्म करे तू केवल अपने आन के लिए।
सब जख्म भी भर जाएँगे तेरे,
देख जीके तू दुनिया वालों के काम के लिए।
मगन न रह हमेशा आप में ही तू,
बन जा ‘हम’कभी लाचारों के लिए।
अरे ,ये दुनिया खिलती गुलाब हैं,
थोड़ा सींच तो सही खिलाने के लिए।
✍️✍️✍️✍️खुशबू खातून