स्वाभिमान
जग से क्या डरना, पर खुद से डर जाना ही अच्छा होगा,
दुनिया से क्या आशा, प्रभु के दर जाना ही अच्छा होगा।
सर कटना ही बेहतर होता, महफिल में सर झुक जाने से,
शीश झुका, घुट-घुट जीने से, मर जाना ही अच्छा होगा।
– नवीन जोशी ‘नवल’
जग से क्या डरना, पर खुद से डर जाना ही अच्छा होगा,
दुनिया से क्या आशा, प्रभु के दर जाना ही अच्छा होगा।
सर कटना ही बेहतर होता, महफिल में सर झुक जाने से,
शीश झुका, घुट-घुट जीने से, मर जाना ही अच्छा होगा।
– नवीन जोशी ‘नवल’