‘स्वाभिमान है हिन्दी’
‘स्वाभिमान है हिन्दी’
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घनाक्षरी-१
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हिन्दी भाषा भारत की, राष्ट्र भाव गौरव की।
अभिव्यक्ति मूल मंत्र, सब जान लीजिए।
एक सूत्र में पिरोति, पुष्प भावना अनेक।
संग साथ बढ़ने का, शुभ ज्ञान लीजिए।
ढो चुके बहुत हम, सभी दासता के चिन्ह,
आज हैं स्वतंत्र सभी, बात मान लीजिए।
हिन्दी का सुयश गान, गूंजें हर गली प्रांत।
हिन्दी हो गुंजायमान, आज ठान लीजिए।
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घनाक्षरी-२
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कार्य हिन्दी में ही करें, देश के सभी विभाग।
और इस हेतु दृढ़, इच्छा शक्ति चाहिए।
तुच्छ राजनीति छोड़, राष्ट्र भावना के साथ।
राष्ट्रभाषा हिन्दी हित, अनुरक्ति चाहिए।
संसद हो न्यायालय, चाहे कोई भी हो मंच।
हिन्दी के लिए अखंड, भाव भक्ति चाहिए।
उत्साह विश्व में बढ़ा, हिन्दी के प्रति अगाध।
देश में इसी निमित्त, व्यक्ति व्यक्ति चाहिए।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १४/०९/२०१९