स्वाभिमान की बात कर रहा,
स्वाभिमान की बात कर रहा,
वो पुश्तैनी भिखमंगो से।
उम्मीद है उसको लाज शर्म की,
त्रेता के बेशर्मों व नंगों से।।
रामचरित जिसे जगा न पाया,
ना योगेश्वर की गीता ही।
ये कलिपशुमनु सुधरेगा,
क्या तेरे इन सत्संगो से।।
“शून्य”
स्वाभिमान की बात कर रहा,
वो पुश्तैनी भिखमंगो से।
उम्मीद है उसको लाज शर्म की,
त्रेता के बेशर्मों व नंगों से।।
रामचरित जिसे जगा न पाया,
ना योगेश्वर की गीता ही।
ये कलिपशुमनु सुधरेगा,
क्या तेरे इन सत्संगो से।।
“शून्य”