स्वाभिमानी मनुष्य
स्वाभिमानी मनुष्य
तुम उसे कैसे चोट पहुंचाओगे,
जो स्वीकृति का मोहताज नहीं,
जो न बुलाए जाने पर भी हंस सके,
न शामिल होने पर भी प्रसन्न रहे।
वह मनुष्य जिसे फर्क नहीं पड़ता,
कि दुनिया उसे गिनती में रखे या नहीं,
वह अपने आप में पूर्ण है,
अपने साथ ही आनंदित है।
उसे न स्वीकारो, न मानो खास,
उसका आत्मबल है उसके पास।
न अपेक्षा, न शिकायत, न झूठा स्वांग,
वह तो चलता है अपने संग।
दुनिया के मान-सम्मान से परे,
वह खुद से ही संतुष्ट है खरे।
वह जानता है जीवन का सार,
साधारण में छुपा है आनंद अपार।
तुम क्या उसे ठेस दोगे भला,
जो अपने संग खुद को संभाला?
उसकी खुशी न बाहरी चीजों में है,
वह खुद में ही पूरा जहान है।