स्वानंद आश्रम
ये है मेरा स्वानंद आश्रम,
जोड़, बाकी, गुणा, भाग
होड़, दौड़ ,तोड़ ,मरोड़
शून्य से निन्यानवे कितने संघर्ष , निभाए सहर्ष ।
व्यतीत सारे वर्षक्रम
अंतिम प्रहर मेरा सृजन , अपना स्वानंद आश्रम ।
सफेद चूहे की पूछ पकड़,
खरगोश की देखी मुस्कान
गले पर स्नेह का हाथ रखा
खिलखिला उठा भूरा श्वान ।
मेरे आश्रम की खुशनुमा भोर
आनंद ही आनंद , ओर न कोई छोर ।
पल्लवित मकरंद ,
तरल परिमल, सहज सरल ।
गुंजन भ्रमर का , तितली की उड़ान
अलौकिक विज्ञान ।
कोकिला, कौआ ,मयूर , चिड़िया
अपना स्वर , अपना राग
नन्हे से जीवन में विराट अनुराग ।
गाय का गोबर,
बकरी का उत्सर्ग ,
मेरे प्रांगण की शोभा , वैभव निसर्ग ।
प्रथम प्रहर प्रकट ,
भव्य मारुति दर्शन
उदित सूर्यदेव का मुझे सर्वप्रथम आमंत्रण।
प्रांगण से कुछ चार कदम पर
एक पुराना कमरा ,
कुछ पुस्तके और मेरे लेखक
छोटा सा परिवार
बिना पुती दीवारों पर
अनुभवों के अंकित विचार ।
प्रांगण का दाहिना कोना कच्ची मिट्टी का मकान
चेहरे की झुर्रियों के मध्य दृष्टिगत होता
अभी भी जीवन का आव्हान ।
थकी, झुकी, कमानी कमर
मेरी बूढ़ी मित्र काकी
सारा अर्जित लुटा गवांकर
चंद सांसों पर बाकी ।
हारी नही अभी भी लेकिन
शेष है जीवट और परिश्रम
बूढ़ी काकी का और मेरा
स्वानंद आश्रम ।
रचयिता
शेखर देशमुख
J 1104, अंतरिक्ष गोल्फ व्यू 2, सेक्टर 78
नोएडा (UP)