स्वाध्याय !
हाँ मुझे नफरत है तुमसे !
मेरे अंदर भी प्रेम की ललक है !
हाँ मैं गुस्सैल हूँ !
शांति चाहिये मुझे !
हाँ शैतान हूँ मैं,
इंसानी चाहत है मुझमें !
हाँ धन-दौलत, ऐसो-आराम, सुख की चाहत है मुझमें !
क्योंकि काम जीवनीय स्वभाव है मेरा !
मेरे अपने जीवन की ..भी प्रवाह एवं धारा है,
जानना है ..मुझे खुद को,
तभी तो मुक्त हो पाऊंगा,
तभी तो जाग पाऊंगा मैं,
तभी तो जीते जी मोक्ष प्राप्त कर पाऊंगा मैं,
क्रोध बाधक नहीं है,
बाधक हर वो आयोजन है ..जो एक चैतन्य जीव के प्रवाह में बाधक है !!!
नोट:-
आपके सबसे नजदीक आपका पथ-प्रदर्शक आपकी अपनी चेतना है !
अन्य के ज्ञान को अपना बनाने हेतु आपको उसे संजीदा, साकार कर ..अनुभव में बदलना होगा !
जैसे:-अध्ययन ..अध्यापन.
गाड़ी, मोटर ,कार सीखना फिर चलाना आदि-आदि !